बस की छत पर जान जोखिम में डालकर यात्रा कर रहे यात्री

बसों की सेवा बनी जानलेवा यात्रा का माध्यम
क्षमता से अधिक भीड़, कंडक्टर की बदसलूकी
अब छतों पर सवारी, यात्रियों की जान जोखिम में
ललितपुर। झांसी ललितपुर सागर खुरई-खिमलसा मार्ग पर संचालित बस सेवा अब जनपद ललितपुर के यात्रियों के लिए रोज का खतरा बन चुकी है। यात्री न केवल खचाखच भरी बस में सफर करने को मजबूर हैं, बल्कि अब स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि यात्रियों को बस की छत पर बैठाकर ढोया जा रहा है। यह गैरकानूनी, जानलेवा और अमानवीय है।
अत्यधिक भीड़ और छत पर यात्रा, कानून की खुली अवहेलना
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, बस में पहले ही निर्धारित क्षमता से कई गुना अधिक यात्री भरे जाते हैं। जब अंदर जगह नहीं बचती, तो कंडक्टर यात्रियों को छत पर चढ़ा देता है। ग्रामीण इलाकों में छतों पर बैठे बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं आम दृश्य हो गया है।
गंभीर कानूनी उल्लंघन
मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 123(1)(सी) के अनुसार, बस की छत पर सवारी कराना पूर्णत: प्रतिबंधित है। ऐसा पाए जाने पर 2 हजार रुपये का जुर्माना और वाहन के परमिट पर कार्रवाई की जा सकती है। धारा 194 ए के तहत ओवरलोडिंग के लिए बस मालिक और चालक दोनों उत्तरदायी होते हैं। यह कार्य बीएनएस की धारा 125 के अंतर्गत भी आता है, जिसमें दूसरों की जान को खतरे में डालना आपराधिक कृत्य माना जाता है। परिवहन निगम की गाइडलाइन के अनुसार, बस की छत केवल सामान के लिए होती है, न कि मानव सवारी के लिए।
कंडक्टर की बदसलूकी और जबरन किराया वसूली जारी
कम दूरी तक सफर करने वाले यात्रियों से मनमाना किराया लिया जा रहा है। टिकट न देना, विरोध करने पर गाली-गलौज करना और महिला यात्रियों से अभद्रता तक की शिकायतें सामने आ रही हैं।
प्रशासन की निष्क्रियता
हालांकि यात्रियों द्वारा कई बार परिवहन विभाग और पुलिस को शिकायतें दी गई हैं, फिर भी अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इससे बस संचालकों के हौसले बुलंद हैं और कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
यात्रियों की मांगें और सुझाव
बसों में यात्रियों की गणना और छत पर चढऩे से रोकने हेतु उडऩदस्ते भेजे जाएं, बस स्टॉप्स पर निगरानी कैमरे और चालकों पर दंडात्मक कार्यवाही हो, कंडक्टरों की जवाबदेही तय हो और हेल्पलाइन नंबर सार्वजनिक किया जाए, अधिक किराया वसूली पर तत्काल लाइसेंस और परमिट निलंबन हो। जनपद ललितपुर की हजारों यात्रियों की जान हर दिन खतरे में है और यह खतरा केवल बस की छत तक सीमित नहीं, बल्कि प्रशासनिक उदासीनता से और बढ़ता जा रहा है। अब समय आ गया है कि सरकार और परिवहन विभाग इस समस्या को गंभीरता से लें और सख्त कार्रवाई करें।