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ललितपुर के टपरन गांव में दलदल बना रास्ता, बीमारों को चारपाई पर ले जाते हैं ग्रामीण

मड़ावरा ब्लॉक का टपरन गांव 50 साल से अंधेरे में: बारिश में दलदल बना रास्ता, बीमारों को चारपाई पर ले जाते हैं ग्रामीण

ग्राम पंचायत छपरौनी का मजरा टपरन अब भी विकास से कोसों दूर, न बिजली, न सड़क — प्रशासन से ग्रामीणों की गुहार

ललितपुर, मड़ावरा — आज़ादी के 78 साल बाद भी ललितपुर जिले के मड़ावरा विकासखंड की ग्राम पंचायत छपरौनी का मजरा टपरन अब तक मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। यहां के करीब 20 परिवार पिछले 50 सालों से बिना बिजली और सड़क के जीवन बिता रहे हैं।

गांव की दुर्दशा इतनी है कि आज भी लोग लालटेन की रोशनी में रातें गुजारते हैं और गर्मी के मौसम में अंधेरे व मच्छरों से बेहाल रहते हैं। बच्चों की पढ़ाई पर इसका सबसे अधिक असर पड़ता है — बो रात में ठीक से पढ़ नहीं पाते और कई बार स्कूल भी छोड़ देते हैं। बारिश में दलदल बन जाता है रास्ता टपरन गांव को पक्की सड़क से जोड़ने वाला लगभग एक किलोमीटर लंबा कच्चा रास्ता हर बरसात में कीचड़ और दलदल में बदल जाता है। बरसाती पानी भर जाने से वाहनों का चलना तो दूर, पैदल चलना भी मुश्किल हो जाता है।

ग्रामीणों का कहना है कि किसी के बीमार पड़ने या गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाने की स्थिति में उन्हें खटिया पर उठाकर एक किलोमीटर तक ले जाना पड़ता है, तब जाकर मुख्य सड़क तक पहुंचा जा सकता है। 50 साल से बिजली का इंतजार, ग्रामीणों के अनुसार, टपरन में अब तक बिजली का खंभा या ट्रांसफार्मर नहीं लगा। गांव के हर घर में आज भी लालटेन और दीए ही रोशनी का सहारा हैं गर्मी में लोग गर्म हवा और मच्छरों से परेशान रहते हैं, और बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह बाधित होती है। एक ग्रामीण ने बताया —

हमारे बुजुर्गों ने भी अंधेरे में जिंदगी बिताई, और अब हमारे बच्चे भी वही झेल रहे हैं। अधिकारियों से बार-बार शिकायत की, पर कोई सुनवाई नहीं हुई। ग्रामीणों की मांग: जल्द मिले सड़क और बिजली गांव के लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि जल्द से जल्द गांव में बिजली के कनेक्शन और पक्की सड़क की व्यवस्था कराई जाए। उनका कहना है कि वे हर बार जनसुनवाई और ग्राम सभा में आवेदन देते हैं, लेकिन सिर्फ आश्वासन मिलता है, कार्रवाई नहीं विकास योजनाओं पर सवाल यह मामला न केवल स्थानीय प्रशासन की उदासीनता को उजागर करता है, बल्कि ग्रामीण विकास योजनाओं की जमीनी सच्चाई पर भी सवाल उठाता है।

जहां सरकारें हर गांव को रोशनी और सड़क से जोड़ने के दावे कर रही हैं, वहीं टपरन जैसे गांव आज भी अंधेरे में डूबे हैं। अब देखना यह है… क्या प्रशासन टपरन गांव की दशा सुधारने के लिए आगे आता है, या फिर यहां के 20 परिवारों को अगले 50 साल भी अंधेरे और दलदल में ही जीना पड़ेगा?

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