जानकी प्रसाद पाटकार का योगदान रहा अविस्मणीय
उग्र तेवरों होने से अंगे्रजी सरकार रही परेशान, इंदिरा गांधी ने दिया था ताम्रपत्र

ललितपुर। स्वतंत्रता के आन्दोलन में बुन्देलखण्ड के लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जिस कारण बुन्देलखण्ड क्रांतिकारियों के लिए शरण स्थलीय रहा है। आजादी की लड़ाई के दौरान अनेक क्रांतिकारी झांसी, दतिया, ललितपुर में शरण लिए थे। अंग्रेजों को जानकारी मिलने पर उन्होंने उनकी घेराबंदी शुरू कर दी थी। स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन में अनेक जनपदवासियों ने बढ़ चढक़र भाग लिया है। जिसमें जनपद के नंदकिशोर किलेदार, बृजनंदन शर्मा, मथुरा प्रसाद वैद्य, वृन्दावन इमलिया, बाबूलाल निगम, हुरूमचंद्र बुखारिया तन्मय, मदन लाल किलेदार, उत्तम चंद्र कठेरिया, शंभू दयाल संज्ञा, मदन लाल निंरजन, गोविन्ददास जैन, हुकुमचंद्र बड़घारिया, रामचंद्र जैन, घनश्याम दास नाई, परमेष्ठी दास जैन, कमलादेवी, जानकारी प्रसाद पाटकार, सुखलाल इमलिया, धन्नालाल गुढ़ा एवं प्यारे लाल कुशवाहा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जिनके द्वारा देश को आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन सभी के द्वारा दास्ता की जंजीरों को स्वीकार नहीं किया गया। यहां तक की इनके द्वारा विदेशी कपड़ों की होली भी जलाई गई। अंग्रेजों द्वार इनके ऊपर अत्याचार किया गया। मुकदमें लिखकर जेल भेजा गया। इसके अलावा सजा भी सुनाई गई। लेकिन इसके बाद भी यह विचलित नहीं हुए और बाहर से आने वाले क्रांतिकारियों की भरपूर मदद की । यहां तक कि अपने घर पर इन्हे शरण दी।
जनपद के मोहल्ला नदीपुरा निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. जानकी प्रसाद पाटकार की आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इनके पिता कटरा बाजार में चूड़ी लाइन में दुकान किए हुए थे। जहां पर वह मंगलसूत्र भरने एवं चूड़ी बेचने का काम करते थे। जानकी प्रसाद जब जवान हुए तो उनके पिता ने दुकान पर बैठाना शुरू किया। लेकिन इनका मन दुकान में नहीं लगा। महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नंद किशोर किलेदार, बृजनंदन शर्मा से यह काफी प्रभावित थे। अधिकांश समय उन्ही के साथ बीतने के कारण इनके अंदर आजादी का जज्बा जागा और वह आन्दोलनों में बढ़ चढक़र भाग लेने लगे। जिस कारण यह अंग्रेजों की नजर में आ गए।
अंग्रेज दरोगा के साथ की थी मारपीट, मिली थी सजा
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. जानकी प्रसाद पाटकार के नाती कपिल पटवा ने बताया कि उनके दादा पहलवान थे। आन्दोलन के दौरान वह आजादचौक से निकल रहे थे। इसी दौरान घोड़ों पर सवार होकर अंग्रेजी दरोगा जा रहा था, तभी उसका जूता उन्हें जा लगा। इस बात से वह काफी उग्र हो गए। देखते ही देखते उन्होंने घोड़े पर बैठे दरोगा को नीचे गिराकर जमकर मारपीट की थी। मारपीट के बाद वह भूमिगत हो गए थे। बाद में अंग्रेजों ने उन्हे गिरफ्तार कर लिया था। उन्हें अग्रेजों द्वारा 1 वर्ष 7 माह की सजा सुनाई गई थी। यह सजा उन्होंने ललितपुर जेल में बिताई।
तत्कालीन प्रधानमंत्री ने सौंपा था ताम्रपत्र
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जानकी प्रसाद पाटकार के नाती कपिल पटवा ने बताया ने स्वतंत्रता के 25वें वर्ष 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी द्वारा उनके दादा को दिल्ली में बुलाकर ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया था। जो आज भी सुरक्षित है।