ललितपुर। बुंदेलखंड की धरा पर महारानी लक्ष्मीबाई, महाराजा मर्दन सिंह समेत अनेक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी पैदा हुए, उनकी वीरता के किस्से आज भी लोगों की जुबां पर हैं। देश ऐसे क्रांतिकारी शूरवीरों को नमन कर रहा है। बुन्देलखण्ड में भी अंग्रेजों से लोहा लेते-लेते अनेक क्रांतिकारी शूरवीर शहीद हुए। इन्हीं में से एक अमर शहीद पं. झुनारे रावत हैं, जिनका नाम जिले में बड़ी ही श्रद्धा से लिया जाता है। 1857 की लड़ाई के इस शूरवीर को अंग्रेजों ने परेशान होकर उन्हें पीपल के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया था।
झुनारे रावत का परिवार ललितपुर नगर में रहकर व्यापार करता था। सन 1857 में अंग्रेजों की सेना जॉन वेवेस्टस के सेनापतित्व में युद्ध कर रियासतों पर कब्जा जमा रही थी। इसी दौरान अंग्रेजी सेना ने चंदेरी के राजा मौर्य प्रहलाद को पराजित कर लगभग दो तिहाई राज्य अपने अधिकार में कर लिया था। वहीं, ललितपुर में अंग्रेजों की सेना अपनी छावनी बनाये हुए थी। इस सेना ने अपनी भूख मिटाने के लिये गायों की हत्या शुरू कर दी थी। गायों पर ढाए जा रहे जुल्म सितम को देख पं. झुनारे रावत का मन द्रवित हो उठा था। इस घटना से उनके मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत ने जन्म लिया और मन ही मन पं. झुनारे रावत ने अंग्रेजों से बदला लेने की ठानी। इस रणनीति को अंजाम देने के लिए उन्होंने ग्राम गौना में राजा मर्दनसिंह तथा शाहगढ़ के राजा बखतबली के मध्य कटुता को समाप्त कराया एवं दोनों में भाईचारे के सम्बन्ध स्थापित कराये। इसके उपरांत उन्होंने ललितपुर आकर सैनिकों को इकट्टा कर संगठित किया, तभी अंग्रेजी सेना ने अमझरा घाटी से ललितपुर की ओर कंूच किया। पं. झुनारे रावत ने लगभग 200 सैनिकों के साथ अंग्रेजी सेना पर छापामार हमला बोल दिया। अचानक हमला होते देख अंग्रेजी सैनिक हड़बड़ा गये और जब तक वह अपने हथियार सम्भालते, तब तक पं. झुनारे रावत एवं उनके सैनिकों ने अंग्रेजी सेना को भारी नुकसान पहुंचा दिया। इस हमले में अनेक अंग्रेजी सैनिकों की मौत हो गई। इसके बाद झुनारे रावत के सैनिक मौके से भाग गये। इसी दौरान झुनारे रावत का घोड़ा अचानक गिर पड़ा। पीछा कर रही अंग्रेजी सेना ने उन्हें चारों ओर घेर लिया। झुनारे रावत को बांधकर अंग्रेजी सेना ललितपुर स्थित उनके पैतृक मकान पर ले आयी और उसी के सामने ही पीपल के पेड़ पर रस्सी का फंदा गले में डालकर उन्हें फांसी दे दी। अंग्रेजों ने उनसे निरंतर अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार करने का दवाब बनाया। यही नहीं, अंग्रेज चंदेरी एवं ललितपुर का शासक स्वीकार करने पर जोर देते रहे लेकिन पं. झुनारे रावत ने उनकी बात मानने से इंकार कर दिया। इस तरह उन्होंने देश के खातिर प्राण देना ही स्वीकार किया।
अंग्रेजों के आंतक से कई दिन तक लटका रहा था पेड़ पर शव
उस समय अंग्रेजों का आतंक इस कदर था कि लोग उनका विरोध करने पर कई बार सोचते थे। लोगों के मन में भय इस कदर घर कर गया था कि झुनारे रावत का शव कई दिनों तक पेड़ पर लटकता रहा लेकिन किसी ने उतारा नहीं। अंग्रेज लोगों को खुलेआम धमकी दे गये थे कि जिसने भी शव उतारा, उसका भी यही हश्र होगा। इससे लोग अंग्रेजों की धमकी से दहशत में आ गए।
सुभाषपुरा में खड़ा पीपल का पेड़ अंग्रेजों की कू्ररता का है गवाह
अमर शहीद पं. झुनार रावत अब हमारे बीच नहीं हैं पर घंटाघर के पास मोहल्ला सुभाषपुरा में उनके पैतृक निवास के सामने पीपल का पेड़ खड़ा है जो आज भी अंग्रेजों की क्रूरता की दास्तां कह रहा है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन लगता यहां मेला
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिवस नवमी को सुभाषपुरा स्थित पीपल के पेड़ के नीचे मेला लगता है।
स्मारक को विकसित करने की आवश्यकता
स्थानीय लोगों का कहना है कि शहीद दिवस पर दूर-दूर से लोग श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। पं. झुनारे रावत का वर्ष 1857 का बलिदान भले ही इतिहास का पन्ना बन गया हो लेकिन नगरवासियों के दिलों में वह आज भी जिन्दा हैं। उनके स्मारक को विकसित करने की आवश्यकता है, जिससे भावी पीढ़ी उनके बलिदान गाथा से प्रेरणा ले सके।