पिता के सामान की कुर्की हुई, जेल में यातनाएं झेली फिर भी नहीं छोड़ा आंदोलन गांधीजी के आह्वान पर किशोर अवस्था में ही आजादी के आन्दोलन को किया वरण डिप्टी सुपरिटेंडेंट पुलिस ने बुरी तरह पीटा, बाल खींचे पर अंग्रेज अफसर के सामने नहीं झुके
ललितपुर। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. बृजनन्दन शर्मा महात्मा गांधी के आह्वान पर 14 वर्ष की उम्र में ही पढ़ाई लिखाई छोडक़र आजादी के आन्दोलन में शामिल हो गए थे। इस दौरान पं. बृजनंदन का जज्बा देखते ही बनता था। उन्होंने अंग्रेज अफसरों की नाक में दम कर दिया था। अंग्रेजों ने उन्हें रोकने के लिए कई जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया लेकिन वह रुके नहीं।
शहर के मोहल्ला सुभाषपुरा में उनका जन्म 23 अक्टूबर 1914 को हुआ था। उनके पिता का नाम नारायणदास था। जब वह विद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे, उसी दौरान महात्मा गांधी के आह्वान पर आजादी का आंदोलन देश भर में फैल गया था। इससे वह महात्मा गांधी से प्रेरित होकर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने आजादी के हरेक आंदोलन में बढ़ चढक़र प्रतिभाग किया। इससे अंग्रेजी हुकूमत परेशान हो उठी थी। 14 वर्ष की उम्र में आजादी के प्रति ऐसा जुनून व जज्बा देखकर अंग्रेज अफसर भी हैरत में पड़ गये थे।
मां से बड़ी भारत माता
जिस समय आजादी का आन्दोलन चरम पर था, उस दौरान बृजनन्दन शर्मा जनपद से बाहर थे, इसी बीच उनके साथियों ने उन्हें मां के निधन की सूचना दी। इस सूचना से बृजनन्दन शर्मा दुखी हुए पर वह विचलित नहीं हुए। उन्होंने यह कहकर उन्हें चुप करा दिया था कि मां से बड़ी भारत माता है, मैं उसकी सेवा में लगा हूं, तुम मेरी मां का दाह संस्कार कर दो।
कई बार जेल की खानी पड़ी हवा
1930 में तीन माह, 1931 में छह माह, 1932 में दो बार छह-छह माह की सजा व सौ रुपये दंड, 1942 में एक वर्ष की सजा व सौ रुपये का दंड झेलना पड़ा।
बेत व कोड़े कम नहीं कर पाए आजादी का जुनून
तत्कालीन डिप्टी सुपरिटेंडेंट पुलिस लिन्डिनबूम ने बाल खींचते हुए उन्हें बुरी तरह पीटा था। इसके बाद भी अंग्रेज अफसर के समक्ष झुके नहीं। यह वाक्या उस समय का है, जब आंदोलन की कमान बृजनंदन शर्मा के हाथ में थी। वह अपने हाथ में तिरंगा झंडा लेकर महात्मा गांधी की जय, इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे, तब डीएसपी लिन्डिनबूम ने इसे रोकने का प्रयास किया था। इस दौरान डीएसपी उन्हें बाल खींचते हुए कोतवाली तक ले गया था। यहां उनकी बेत से निर्मम पिटाई की गई थी, साथ ही कोड़े भी बरसाए थे। इसके बाद भी आजादी का जुनून कम नहीं हुआ और वह अंग्रेज अफसर के सामने भारत मां की जय के नारे लगाते रहे। मजिस्ट्रेट ने उन्हें तीन माह की सजा सुनाई थी।
शराब के खिलाफ किया था आंदोलन
वर्ष 1931 में शराब के खिलाफ आंदोलन किया था। इस दौरान उनके नेतृत्व में युवाओं ने शराब की दुकानों पर धरना-प्रदर्शन किया था। इस मामले में उन्हें गिरफ्तार किया गया था। तत्पश्चात उन्हें छह माह की जेल की हवा खानी पड़ी थी।
करो या मरो का नारा किया था बुलंद
गांधी जी के आह्वान पर 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया था। इस दौरान बृजनंदन शर्मा ने करो या मरो का नारा बुलंद किया था।
कभी तहसील पर तो कभी विद्यालय पर फहराया था तिरंगा
बृजनंदन शर्मा ने कभी तहसील भवन पर कभी हाईस्कूल व अन्य विद्यालयों में तिरंगा फहराया था। 14 जनवरी 2001 को आजादी की लड़ाई लडऩे वाले शर्मा जी भारत मां के सदा के लिए हो गए।
पूर्व पीएम राजीव गांधी व राज्यपाल मोतीलाल बोरा ने किया था सम्मानित
वर्ष 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें सम्मानित किया था। वहीं, प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल बोरा ने भी वीर सपूत को सलाम कर सम्मानित किया था।
पालिकाध्यक्ष का पद किया सुशोभित
आजादी मिलने के पश्चात उन्होंने नगर पालिका अध्यक्ष पद को भी सुशोभित किया। इस दौरान उन्होंने नगर के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं क्रियान्वित कराई।
ललितपुर में खोला था खादी भंडार
बृजनंदन शर्मा ने ललितपुर में खादी भंडार खोला था, जो काफी चर्चित हुआ।
सुपर मार्केट में स्थापित की गई प्रतिमा
स्वतंत्रता सेनानी पं. बृजनंदन शर्मा की प्रतिमा सुपर मार्केट में स्थापित की गई है लेकिन उसका सौंदर्यीकरण नहीं कराया गया। इस प्रतिमा के आसपास अतिक्रमण पसरा रहता था, जिससे कई बार प्रतिमा पर लोगों की नजर नहीं पहुंच पाती है।