चुन्नीलाल चौरसिया ने ब्रिटिश हुकूमत की हिला दी थीं जड़ें
भारत छोड़ों आन्दोलन में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका, कई बार गये जेल

महात्मा गांधीजी के आंदोलन से प्रेरित होकर छोड़ी थी डिप्टी रेंजर की नौकरी
ललितपुर। कस्बा पाली के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी चुन्नीलाल चौरसिया से अंग्रेज अफसर बेहद खौफ खाते थे। उन्होंने क्रान्तिकारियों के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिला दी थी। आजादी के आन्दोलन को उन्होंने गांव-गांव तक फैलाने का काम किया।
कस्बा पाली निवासी स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी चुन्नीलाल चौरसिया के पिता पोटेराम मध्य प्रदेश के सागर जिले के खिमलासा में शिक्षक थे, वह 2 भाई थे। उनके बड़े भाई भैरों प्रसाद भी शिक्षक थे। चुन्नीलाल का जन्म वर्ष 1914 में खिमलासा में हुआ था। प्रारम्भिक शिक्षा खिमलासा में हुई, इसके उपरांत उन्होंने मध्य प्रदेश के सागर व जबलपुर से उच्च शिक्षा प्राप्त की। वर्ष 1934 में वह डिप्टी रेंजर बन गये। जबलपुर जिले की तत्कालीन मण्डला तहसील के सैपुरा बीट में उनकी तैनाती हुई। उस समय देश में आजादी का आन्दोलन चलाया जा रहा था। ब्रिटिश हुकूमत का विरोध करने के लिए देश के क्रान्तिकारी धरना प्रदर्शन कर रहे थे। महात्मा गांधी के आंदोलन से प्रेरित होकर वर्ष 1936 में उन्होंने अंग्रेजी सरकार की डिप्टी रेंजर की नौकरी छोड़ दी थी और आन्दोलन में कूद गये। इसके बाद उन्होंने आन्दोलन को खड़ा करने के लिये अपनी मातृभूमि कस्बा पाली को चुना था। सबसे पहले पाली में कांग्रेस का गठन किया और गांव-गांव में बैठकें की, इससे लोगों में आजादी के प्रति जागरुकता आई और स्थानीय लोग आंदोलन में शामिल होने लगे। इससे वह अंग्रेज अफसरों के निशाने पर आ गए। इसके बाद भी वह रुके नहीं। उन्होंने वर्ष 1940 में मौजूदा जंग हमारा फर्ज आंदोलन में सक्रियता भाग लिया, इस कारण उन्हें एक वर्ष के लिये नजरबन्द कर दिया गया था। 18 मार्च 1941 को धारा 38 डीआइआर के तहत उन्हें 9 माह के कठोर कारावास की सजा ललितपुर के तत्कालीन मजिस्ट्रेट ने सुनाई थी। इसके बाद उन्हें झांसी जेल भेज दिया था। जेल से बाहर आये तो वह फिर आन्दोलन में जुट गये। 12 जनवरी 1942 को 35 दिन के लिये फिर जेल भेज दिया था। आजादी के आंदोलन में युवाओं में जोश भर देने वाले इस अमर सेनानी को लोग स्वतन्त्रता दिवस पर याद कर रहे हैं। उधर, स्वतन्त्रता सेनानी के नाती संजीव चौरसिया ने नगर पंचायत अध्यक्ष से पाली में स्वतन्त्रता सेनानियों की स्मृति में एक स्मारक बनवाने की मांग की है।
कई पदों पर रहे पदासीन
वर्ष 1954 में वे जिला पंचायत बोर्ड झांसी के उपाध्यक्ष व कांग्रेस के मंडल अध्यक्ष भी रहे। वर्ष 1962 में पाली न्याय पंचायत के सरपंच व 1967 में ग्राम सभा पाली के सभापति भी रहे।
राष्ट्रधर्म पहले फिर घर परिवार
आजादी आन्दोलन के समय चुन्नीलाल अक्सर घर से बाहर रहते थे। 6 पुत्रों व 3 पुत्रियों के भरे पूरे परिवार की जिम्मेदारी अधिकांशत: मथुराबाई ही उठाती थी। कई बार इस मुद्दे पर उनकी बातचीत होती थी तो चुन्नीलाल अपनी पत्नी से एक ही बात कहते थे कि देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने का राष्ट्रधर्म पहले है, इसके बाद घर परिवार है। वर्ष 1928 में उनका विवाह मथुराबाई से हुआ था।
जब उन पर झौंके गए थे फायर
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह बालाबेहट में युवाओं को संगठित करने के लिए जागरुक करने में जुटे थे। इसी दौरान एक युवक से उनकी नौंकझौंक हो गयी थी, जिससे वह उनसे रंजिश रखने लगा था। चुन्नीलाल प्रतिदिन अपने घर से नीलकंठेश्वर मन्दिर दर्शन करने के लिए जाते थे। एक दिन रास्ते में कठवरया नामक स्थान पर बरगद के पेड़ पर चढक़र उस युवक ने चुन्नीलाल पर 3 फायर झौंक दिए थे। संयोग से वह इस घटना में बाल-बाल बच गये थे।
सडक़ हादसे में हुआ था निधन
13 मार्च 1973 दिन मंगलवार को चुन्नीलाल का निधन हो गया था। परिवार के लोग आज भी उस मनहूस घड़ी को नहीं भूल पाए हैं। उनके बड़े पुत्र नारायणदास चौरसिया बताते हैं कि उस दिन उनके पिता आवश्यक कार्य से बस से झांसी जा रहे थे। रास्ते में तालबेहट के पास ग्राम ककड़ारी में सामने से आ रहे सेना के ट्रक ने बस में जोरदार टक्कर मार दी थी, जिससे उनके पिता चुन्नीलाल की मौके पर ही मृत्यु हो गयी थी। उस समय उनकी उम्र 59 साल थी।
उपेक्षा का शिकार स्वतंत्रता सेनानी स्मृति द्वार
स्वतंत्रता सेनानी चुन्नीलाल चौरसिया के नाम पर स्मृति द्वार कस्बा पाली में बनवाया गया, जो उपेक्षा की भेंढ़ चढ़ गया है। इसका लोकार्पण राज्यमंत्री मनोहरलाल पंथ ने किया था। इसके बाद न तो राज्यमंत्री ने इस द्वार की ओर पलटकर देखा और न ही नगर पंचायत अध्यक्ष ने। इससे प्रतीत होता है कि स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर केवल दिखावा हो रहा है।