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1932 में तिरंगा लहराने पर गिरफ्तार हुए थे बृजनंदन

दासता की जंजीरों को नहीं किया स्वीकार, विदेशी कपड़ों की भी जलाई थी होली

ललितपुर। जिस समय देश में अंग्रेजों की निरंकुशता चरम पर थी, उस समय यूपी के छोटे से शहर में भी क्रांतिकारियों ने जन्म लिया और उन्होंने अंग्रेजी सरकार की दासता को तनिक भी स्वीकार नहीं किया। इन्हीं में से एक महावीरपुरा निवासी बृजनंदन किलेदार थे, जिन्होंने वर्ष 1932 में तिरंगा झंडा शहर में लहराकर अंग्रेजों में बेचैनी पैदा कर दी थी। इस पर उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी थी। यही नहीं, वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एक वर्ष तक नजरबंद रहना पड़ा था। वह स्वतंत्र भारत में नगर पालिका के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। वर्ष 2002 में वह ब्रह्मलीन हो गए।

बाल्यकाल से ही पिता से प्रभावित थे बृजनंदन किलेदार
मोहल्ला महावीरपुरा में रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी नंदकिशोर किलेदार के यहां बृजनंदन किलेदार का जन्म वर्ष 1901 में हुआ था, उन पर बाल्यकाल से ही पिता की विचारधारा, राजनीतिक एवं सामाजिक गतिविधियों का प्रभाव पड़ा। वह अपने पिता के पद चिह्नों पर चलते हुए वर्ष 1929 में आजादी के आंदोलन में सक्रिय हो गए थे। आंदोलन के भाग लेने से उनकी शिक्षा दीक्षा भी प्रभावित हुई। इस दौरान उन्होंने स्वाध्याय का सहारा लेते हुए ज्ञानार्जन किया, साथ ही वह वर्ष 1945 तक के लगभग हर आंदोलन में शामिल हुए।

असहयोग आंदोलन में हुए थे गिरफ्तार
असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने अंग्रेजी सरकार के समक्ष 11 मांगे रखी थी। इनमें से एक विदेशी कपड़ों के आयात को रोकने की मांग की थी। आंदोलन में भाग लेने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।

माफी की जगह सजा को किया स्वीकार
बृजनंदन किलेदार ने दासता की जंजीरों को स्वीकार करने की जगह जेल जाना पसंद किया था। एक बार मजिस्ट्रेट ने उनसे माफी मांग लेने की बात कही थी, तब उन्होंने मजिस्ट्रेट को करारा जवाब दिया था। इस पर उन्होंने सिरे से नकार दिया,
इससे नाराज होकर मजिस्ट्रेट ने उन्हें एक वर्ष की सजा सुनाई गई थी।

स्वतंत्र भारत में चुने गए थे नपाध्यक्ष
डा. सुशीला नैयर उन्हें बड़ा भाई मानती थी। वह स्वतंत्र भारत में नगर पालिका के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। इस दौरान उनके द्वारा किए गए कार्य यादगार बन गए। वर्ष 2002 में वह ब्रह्मलीन हो गए।

विदेशी कपड़े की जली होली तो साथ आए नौजवान
बृजनंदन किलेदार के नेतृत्व में विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई थी। इस मौके पर बृजनंदन शर्मा ने ओजस्वी भाषण दिया था, जिसे सुनकर शहर के नौजवान उनके साथ हो गए थे।

चन्द्रशेखर आजाद के आश्रयदाता बृजनंदन किलेदार
किलेदार परिवार वैभवशाली परिवार था। स्व. श्री पं. नंदकिशोर अंग्रेजी एवं संस्कृति के विद्वान श्रीमद् अध्येता एवं व्याख्या थे। पहली जनवरी सन 1902 ई. को बृजनंदन किलेदार का जन्म हुआ था, वह नंदकिशोर किलेदार के श्रेष्ठ पुत्र थे। पं. बृजनंदन किलेदार पर बाल्यकाल से ही पिता की विचारधारा तथा राजनैतिक, सामाजिक गतिविधियों का प्रभाव पड़ा तथा वह भी अपने पिता के पदचिह्नों पर चल पड़े थे। बृजनंदन किलेदार ने हाईस्कूल का बहिष्कार करते हुए परीक्षा नहीं दी। पिता के पुस्तकागार से हिन्दी संस्कृति एवं अंग्रेजी को श्रेष्ठ पुस्तकों के स्वाध्याय से उन्होंने ज्ञानार्जन किया। सन 1929 से बृजनंदन किलेदार भी अपने पिता के साथ सक्रिय रूप से स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे तथा सन 1945 तक हर आंदोलन में भाग लिया।
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चंद्रशेखर आजाद को दिया आश्रय
चन्द्रशेखर आजाद को किलेदार परिवार ने अपने यहां गुप्त रूप से आश्रय दिया। उन्होंने अपने निवास स्थान से लगे पीछे वाले मकान से महिला वस्त्रों में बैलगाड़ी में अपने जमींदारों के गांव स्योनी खुर्द से दैलवारा स्टेशन आगे महाराज खड्ग सिंह देव के खनियाधाना भिजवाया।
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बृजनंदन किलेदार के कार्यकाल में निर्मित हुआ घंटाघर
सन 1946 में बृजनंदन किलेदार नगर पालिका के अध्यक्ष चुने गये और उन्होंने अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में घंटाघर का निर्माण कराया।

घंटाघर के सामने प्रतिमा की गई स्थापित
स्वतंत्रता सेनानी बृजनंदन किलेदार की प्रतिमा घंटाघर के सामने स्थापित की गई थी। इस प्रतिमा के आसपास अतिक्रमण जमा हुआ है, जिससे प्रतिमा का सौंदर्यीकरण नहीं हो पा रहा है। हालांकि, हर शुक्रवार को नगर पालिका परिषद के अधिकारियों द्वारा प्रतिमा पर माल्यार्पण किया जाता है।

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