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भोले की भक्ति से होतीं हैं मनोकामनाएं पूर्ण – स्वामी चन्द्रेश्वरगिरी

चौथे सावन सोमवार को श्रद्धालुओं ने बनाये 35 लाख पार्थिव शिवलिंग
ललितपुर। श्री सिद्धपीठ चंडी मंदिर धाम पर चल रहे सवा पांच करोड़ पार्थिव शिवलिंग निर्माण व श्री रूद्रमहायज्ञ में सावन के चौथे सोमवार को धर्मलाभ लेने के लिए श्रद्धालुओं का हूजुम उमड़ पड़ा। प्रात: काल से ही श्रद्धालु पार्थिव शिवलिंग निर्माण के लिए मंगल भवन में एकत्रित हो गये। सावन सोमवार को श्रद्धालुओं ने 35 लाख पार्थिव शिवलिंग का निर्माण किया। प्रात: कालीन बेला में यज्ञशाला में श्री रूद्रमहायज्ञ का पंचांग पूजन किया गया, जो मुख्य यजमान सहित अन्य सहयजमानों द्वारा किया गया।
अपरान्ह में पार्थिव शिवलिंग का पूजन व महारूद्राभिषेक किया गया। जो मुख्य यजमान हरिशंकर साहू, कुंज बिहारी उपाध्याय, संजीव उपाध्याय, शिव नारायण पुरोहित सहित अन्य सह यजमानों द्वारा किया गया। तत्पश्चात श्रद्धालुओं को कथा सुनाते हुए श्री चंडी पीठाधीश्वाराचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी चन्द्रेश्वर गिरी जी महाराज ने कहा कि भोले की भक्ति निराली है। जो भगवान की भक्ति पूजन अर्चना करता है। भगवान उसकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते है। भगवान् शिव मे भक्ति होने से मनुष्य संसार बंधन से मुक्त हो जाता है। देवता के कृपा प्रसाद से उनमे भक्ति होती है और भक्ति से देवता का कृपाप्रसाद प्राप्त होती है। शिवपद कि प्राप्ति हि साध्य है । उनकी सेवा ही साधन है तथा उनके प्रसाद से जो नित्य -नैमितिक आदि फलो कि ओर से नि:स्पृह होता है, वही साधक है। वेदोक्त कर्म का अनुष्ठान करके उसके महान फल को भगवान शिव के चरणों में समर्पित कर देना हि परमेश्वर पद कि प्राप्ति है। वही सालोक्य आदि के क्रम से प्राप्त होने वाली मुक्ति है। उन भक्तों को भक्ति के अनुसार उन सबको उत्कृष्ट फल कि प्राप्ति होती है। उस भक्ति के साधन अनेक प्रकार के है ,जिनका प्रतिपादन साक्षात महेश्वर ने ही किया है। कान से भगवान के नाम गुण और लीलाओं का श्रवण वाणी द्वारा उनका कीर्तन तथा मन द्वारा उनका मनन – इन तीनो को महान साधन कहा गया है। तात्पर्य यह कि महेश्वर का श्रवण, कीर्तन और मनन करना चाहिये। यह श्रुति का वाक्य हम सब के लिये प्रमाणभूत है। इसी साधन से संपूर्ण मनोरथो कि सिद्धि में लगे हुए आपलोग परम साध्य हो। लोग प्रत्यक्ष वस्तु को आँख से देख कर उसमे प्रवृत होते है। अत: पहला साधन श्रवण है। उसके द्वारा गुरु के मुख से तत्व को सुनकर श्रेष्ठ बुद्धि वाला विद्वान पुरुष अन्य साधन कीर्तन एवं मनन कि सिद्धि करे। भगवान शंकर कि पूजा ,उनके नामो के जप तथा उनके गुण, रुप, विलास और नामो का युक्ति परायणचित्त के द्वारा जो निरंतर परिशोधन या चिंतन होता है।उसी को मनन कहा गया है। वह महेश्वर कि कृपा-दृष्टि से उपलब्ध होता है। इस दौरान गिरीश शर्मा, प्रेस क्लब अध्यक्ष राजीव बबेले, राम कृपाल गुप्ता, लखन यादव, अश्विनी पुरोहित, शत्रुधन यादव, राहुल शुक्ला, बाबा हीरानंदगिरी, दिनेश पाठक, प्रदीप शर्मा, बाबा सर्वेश्वर गिरी, राघवेन्द्र सिंह आदि मौजूद रहे।

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