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श्रद्धा के साथ मनाया गुरु गोविंद सिंह का प्रकाश पर्व

सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह महाराज का प्रकाश पर्व श्री गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के तत्वाधान में लक्ष्मीपुरा स्थित गुरुद्वारा साहिब में धूमधाम के साथ मनाया गया इस अवसर पर अखंड पाठ हुआ,दिल्ली से पधारे ज्ञानी करमजीत सिंह जी ने अपने जत्थे के साथ गुरबाणी कीर्तन कर संगत को निहाल किया उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा की गुरु गो‍बिंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु हैं। इनका जन्म पौष सुदी 7वीं सन् 1666 को पटना में माता गुजरी जी तथा पिता गुरु तेगबहादुर जी के घर हुआ। उस समय गुरु तेगबहादुर जी बंगाल में थे। उन्हीं के वचनोंनुसार गुरुजी का नाम गोविंद राय रखा गया, और सन् 1699 को बैसाखी वाले दिन गुरुजी पंज प्यारों से अमृत छक कर गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह जी बन गए। उनके बचपन के पांच साल पटना में ही गुजरे। अध्यक्ष ओंकार सिंह सलूजा* ने कहा की 1675 को कश्मीरी पंडितों की फरियाद सुनकर गुरु तेगबहादुर जी ने दिल्ली के चांदनी चौक में बलिदान दिया। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी 11 नवंबर 1675 को गुरु गद्दी पर विराजमान हुए। धर्म एवं समाज की रक्षा हेतु ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 ई. में खालसा पंथ की स्थापना की। पांच प्यारे बनाकर उन्हें गुरु का दर्जा देकर स्वयं उनके शिष्य बन जाते हैं और कहते हैं-जहां पांच सिख इकट्ठे होंगे, वहीं मैं निवास करूंगा। उन्होंने सभी जातियों के भेद-भाव को समाप्त करके समानता स्थापित की और उनमें आत्म-सम्मान की भावना भी पैदा की। *वरिष्ठ उपाध्यक्ष हरविंदर सिंह सलूजा*ने कहा कि गुरु गोबिंद सिंह की पत्नियां, माता जीतो जी, माता सुंदरी जी और माता साहिब कौर जी थीं। बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह आपके बड़े साहिबजादे थे जिन्होंने चमकौर के युद्ध में शहादत प्राप्त की थीं। और छोटे साहिबजादों में बाबा जोरावर सिंह और फतेह सिंह को सरहंद के नवाब ने जिंदा दीवारों में चुनवा दिया था। कार्यक्रम में सिख संगत के अलावा अनेकों उपस्थित रहे।

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