निशिचरहीन करों महि, भुज उठाए प्रणकीन्ह वाली धरती पर ही रामराज्य की फसल लहलहा उठी

आज के संदर्भ में तुलसीदास जी दरिद्रता के रावण को खत्म करना चाहते थे
ललितपुर। विजयादशमी पर्व पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि त्रेतायुगीन रामकथा के वर्तमान अमर गायक लोकनायक तुलसी के ही ये शब्द हैं। दारिद दशानन दबाई दुनी दीनबंधु दरिद्रता ही रावण है, जो सिर्फ एक व्यक्ति को नहीं, सारी दुनिया को दबाए हुए है। तुलसीदासजी यह भी खुलासा करने से नहीं चूकते नृप पाप परायन, धर्म नहीं, करि दण्ड विडम्ब प्रजा-नित हीं-प्रजा पालन का धर्म राजा भूल गए हैं। प्रजा को डंडे के बल पर डरा धमका कर वश में किए हैं। कवि का निष्कंप भरोसा है कि ऐसे कुशासकों का अंत जो जनता को सता रहे हैं, रावणों और कंसों की तरह जल्द से जल्द होगा। अन्याय के मलबे पर ही समता और समरसता की फसल लहलहाएगी। परंतु ऐसा तभी होगा विनु विज्ञान कि समता आवै- जबकि लोक संघर्ष, राम की तरह तर्कसंगत-विज्ञान बुद्धि से परिचालित होगा। नवरात्र पर देवी पुराण के अनुसार अंतिम दिन राम की शक्ति पूजा फलीभूत हुई। कविवर निराला के शब्दों में होगी जय, होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन कहशक्ति, राम के मुख में हुई लीन। रणांगढ़ में विभीषण बड़े चिंतित हुए कि रावण रथी विरथ रघुवीरा, देख विभीषण भयउ अधीरा।पर वह थोड़ी देर के लिए यह भूल गए कि भगवान राम के दोनों पैर ही सौरज-धीरज जेहिरथ चाका हैं और इसी धर्म रथ पर लहराती सत्य-शील दृढ़ध्वजा पताका जो सनातन जीत दिलवाएगी। त्रिजटा द्वारा प्रात: काल देखे गए सपने को जमीनी हकीकत बदलने में अब देर नहीं। यह सपना मैं कहौं पुकारी, हुईयहि सत्य गयउ दिन चारी। अन्तत: भारी संघर्ष के बाद जीत को सकै, अजय रघुराई की घड़ी आ गई। अयोध्या से लंका तक वनवासी निर्वासित राजकुमार राम के साथ जनता जुड़ती चली गई और कारवां बनता चला गया। क्रांतिदर्शी महात्मा तुलसीदास आगाह करते हैं कि त्रेता में यदि जनद्रोही राक्षसों का अंत नहीं किया जाता तो त्रैलोक्य में समता तथा न्याय आधारित रामराज्य कैसे आ सकता था? पर आज के युग में दरिद्रता का दशानन, एक व्यक्ति को नहीं, अपितु सारी दुनियां को दवाए और सताए हुए है। हे प्रभु! दारिद्रय दशानन दवाई दुनी दीन बन्धु का संहार करके जनता की रक्षा करो और फिर से वह रामराज्य लाओ, जहाँ नहिं कोउ अबुध, न लक्षण हीना अर्थात सभी प्रबुद्ध और सभी स्त्री-पुरुष हुनरमन्द-एक भी बेरोजगार नहीं।